Mirabai love poetry in Hindi exemplifies the essence of divine devotion, merging human longing with spiritual surrender. Firstly, her verses express an unwavering love for Lord Krishna, depicting him as her eternal soulmate. Moreover, Mirabai’s words convey her readiness to renounce worldly attachments, choosing instead the spiritual path of bhakti (devotion). Additionally, her poetry, filled with intense passion, inspires readers to experience love beyond the material, reaching the divine. Consequently, Mirabai devotion exemplifies selfless love, resonating deeply across generations. Ultimately, her poetry reveals that true love is timeless and boundless, as it transcends earthly desires and leads to a profound union with the divine.
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।
मैं तो सांवरे के रंग राची, मोहे और न कोई भाय,
जिया में मेरे प्रीत बसी है, और सब भुलाय।
मेरो मन अनत कहां सुख पावे,
जैसे उड़ी जहाज को पंछी, फिर जहाज पे आवे।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, अनत ना लागे नीको,
जिनके सिर मोर मुकुट, सोई मूरति मीठी।
चारों ओर मैं देखूं प्यारे, तू ही तू है सब जग में,
काहे को डरूं मैं जग से, जब तू ही है मेरे संग में।
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई,
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
प्रभु संग लागी ऐसी लगन, मैं बावरी हो गई,
दिन रात उन्हीं का स्मरण, मैं सब भुला गई।
विरह की आग में जले, मीरा का तन मन,
पिया बिना यह जग सुना, ना रंग, ना जीवन।
राणा जी, मत रोको मीरा को, जाने दो साधु के संग,
मीरा तो हो गई बावरी, घनश्याम के रंग।
मन मंदिर में प्रीत बसी, मैं तन-मन खो बैठी,
अब तो सारा जग छोड़ा, मीरा कृष्णमयी हो बैठी।