Kabir Das’s love poetry in Hindi eloquently blends human love with divine devotion. Firstly, his verses emphasize the importance of unconditional love, not only for others but also for the self. Additionally, Kabir’s poetry reveals his belief that true love transcends worldly desires, encouraging a surrender to spiritual unity. Moreover, his words often challenge conventional beliefs, urging readers to find love in simplicity and humility. Consequently, his couplets resonate deeply, illustrating love as a path to enlightenment. Ultimately, Kabir’s poetry serves as a reminder that love, when pure and selfless, becomes a journey of spiritual awakening, connecting us all to the divine in a profound and timeless way.
मन के मते न चलिये, मन के मते अनेक,
जो मन पर सवारी करे, सब सुफल हो एक।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ,
जो घर राखे आपना, चले हमारे साथ।
प्रेम पियाला जो पिये, सीस दक्षिणा देय,
लोभी सीस ना दे सके, नाम प्रेम का लेय।
जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी,
फूटा कुंभ जल जलहि समाना, यह तत कहे ज्ञानी।
हरि से सजन ना कोई, करै सो हरि जान,
कबिरा तज संसार को, हरि को किया प्रमाण।
मोरी हद तो है जगत में, बेमुहाने का कौन,
तूं तो है मेरा साजन, तेरा दीदार कौन।
मैं सोया जगत जागाया, मैं जागा जग सोय,
यह जग सोने का सुखी, मम सोया दुख होय।
हंस ऊड़े सो चल गए, रेत ही रही परायी,
कबीर न जाने मीतरा, जीव लिया कि खोई।
जब लग कंचन संग बसत है, तब लग हरि नहीं होय,
जब मन साचा प्रेम भरे, तब मोती की होय।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे वन माहि,
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
रुख सुखे पात झरे, सजन के परदेस,
कबिरा मत थके, याद सताए दिन रात।
एक बूंद से सागर भरे, दो बूंद से कराह,
कबिरा ऐसी प्रेम गली, त्याग चले प्रभु राह।
मन मस्त हुआ, हरि गुण गाए, मन पर होया भारी,
जहां मैं नहीं, हरि समा जाए, तैं कौन करे सुख भारी।